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नेता क्यों करते हैं कार्यकर्ताओं को गुमराह

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नगेन्द्र सिंह झाला
कार्यकर्ता और नेता में, साहब और नौकर जैसा बर्ताव होता है। नेताजी (स्वामी) है कार्यकर्ता (सेवक) है। कभी-कभी स्वामी भक्ति में सेवकों को कई ऐसे कार्य भी करने पड़ते है। जो सार्वजनिक रूप से मान्य नहीं है। भारतीय समाज में कई-कई प्रकार के सज्जन भांती-भांती की गतिविधियों में लिप्त रहते है। यहां तक कि असामाजिक तत्वों का भी ऑफीस होता है। उनके टपोरी भी साहब की सीट साफ करते है। समय से ऑफीस खोलते है। ऐसे ऑफीसों से कई अन्य कार्यालयों का कनेक्शन होता है। जरूरतमंदों को ऊंची दर से कभी भी ऋण लेने की सुविधा मुहैया करवाते है। जमीन जायदाद का कोर्ट के पहले हल निकालने में भी महारथ हासिल रखते है। एल.एल.बी के विद्यार्थियों से भी अधिक धाराओं (कानून एक्ट) का ज्ञान इन संस्थानों के अनपढ़ रखते है। कई छुटभय्ये अपने आकाओं के प्रेम में मदीरापान कर, गली, मोहल्ले, कॉलोनियों में रंगदारी का शोक भी फरमाते है। तीज त्यौहार पर माहौल बनाने में ये तपका समाज के अन्य तपके को पीछे छोड़ देता है। अदृश्य शक्ति इंसाफ करती है। इसलिए मानव हो या दानव जो भी, चाहे-अनचाहे, जाने-अनजाने में धर्म पताका लहराता है। और यह जानता हैं, कि कोई ऐसी शक्ति तो है। जिसे में नहीं चाहकर भी उस और जा रहा हूं अनमने मन से ही सही, मैं कुछ अच्छा बनने के लिए कुछ कर रहा हूं। बस यही से व्यक्ति के हृदय परिवर्तन के संकेत मिलते है। यदि हमारे भारतीय समाज के सज्जन दुर्जनों से भी मेल-मिलाप रखें, तो निश्चित रूप से दुर्जन में सज्जनत्व का संचार होगा। आज समाजसेवियों, बुद्धिजीवियों को यह चुनौती स्वीकार कर, हमारे बीच दिशाहीन युवाओं को बोध कराने का संकल्प लेने की आवश्यकता है। तभी नैतृत्वकर्ता वास्तविक नेता बन पायेगा और कार्यकर्ता समर्पित सेवक की तरह राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे पायेंगे।

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