Home देशपॉलिटिकल शॉट : क्यों खत्म हुआ शिव का राज…? और आखिर मोहन यादव ही क्यों बने मध्यप्रदेश के सीएम.. जानिए इस वायरल होते प्रश्न का जवाब…

पॉलिटिकल शॉट : क्यों खत्म हुआ शिव का राज…? और आखिर मोहन यादव ही क्यों बने मध्यप्रदेश के सीएम.. जानिए इस वायरल होते प्रश्न का जवाब…

by Janvakalat News
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जनवकालत न्यूज़ /भोपाल | (Exclusive)

मध्य प्रदेश में शिव का राज खत्म हो गया है, अब यहां मोहन राज होगा। साथ ही सत्ता के तीन केंद्र भी नजर आएंगे। इनमें मोहन यादव मुख्यमंत्री, राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा उपमुख्यमंत्री होंगे। आज भाजपा ने जैसे ही इन नामों का एलान किया उसके साथ मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज की डेढ़ दशक लंबी सियासी पारी खत्म हो गई। 

शिव का राज खत्म होने के तीन बड़े कारण है जिसका विश्लेषण हम आपको आगे बतायेंगे, पहले जाने की आखिर क्यों बने मोहन यादव मध्यप्रदेश के सीएम….

मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री मोहन यादव के साथ भाजपा ने एक साथ कई राजनीतिक समीकरणों को साध लिया है। खास तौर से उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे यादव बाहुल्य इलाकों में भाजपा ने कई स्थानीय पार्टियों के सियासी समीकरण बिगाड़ दिए। सियासी जानकार मानते हैं कि मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री का नाम आने वाले लोकसभा के चुनाव के लिहाज से भाजपा के लिए एक बड़ा पॉलिटिकल शॉट माना जाएगा। खास तौर से तब जब जातीय जनगणना कराए जाने की लगातार मांग हो रही है। बिहार में जातीय जनगणना के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था भी लागू कर दी गई है। ऐसे माहौल में एक बार फिर से पिछड़े समुदाय के मुख्यमंत्री को रिप्लेस कर यादव और पिछड़े समुदाय के ही व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाने का सियासी मकसद भी साफ है।   

सीएम का नाम घोषित करने में देरी भले की हो, लेकिन जो नाम सामने आया है वह पार्टी के सियासी नजरिये से फिट बैठता है। कहना है कि मोहन यादव मुख्यमंत्री तो मध्यप्रदेश के ही रहेंगे लेकिन जो सियासी संदेश जातीयता के समीकरणों के आधार पर भाजपा ने देश के अलग-अलग हिस्सों में देना चाहती है, वह दे चुकी है। इसलिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का चयन जितना मध्यप्रदेश के लिए महत्वपूर्ण है, उतना ही आने वाले लोकसभा के चुनावी नजरिए से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।भाजपा ने मोहन यादव के साथ उत्तर प्रदेश और बिहार में यादवों के बीच में बड़ी उम्मीद जगाई है। वैसे तो मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर भी यादव ही थे। लेकिन जिस तरीके से अखिलेश यादव और लालू यादव उत्तर प्रदेश और बिहार समेत अलग-अलग राज्यों में यादवों पर अपना आधिपत्य जमाते हैं, वह नैरेटिव अब टूटेगा।

समाजवादी पार्टी सहित कांग्रेस को भी किया बैकफुट पर 

मोहन यादव का नाम तब सामने आया है, जब पूरे देश में जातीय जनगणना की चर्चा हो रही है। कहा जा रहा है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा मजबूती के साथ काम करेगा। इस मुद्दे पर समाजवादी पार्टी के मुख्य अखिलेश यादव से लेकर लालू, नीतीश और कांग्रेस पार्टी भी फ्रंट फुट पर खेल रही है। ऐसे दौर में भाजपा ने मोहन यादव के नाम के साथ विपक्ष की सियासत में बड़ी हलचल पैदा कर दी है। वह कहते हैं कि बिहार में तो नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना के जरिए उसके आधार पर आरक्षण की व्यवस्था भी कर दी। ऐसे में माना जा रहा है कि यह विपक्ष का बड़ा सियासी दांव साबित हो सकता है। भाजपा ने जिस तरीके से चुपचाप नए मुख्यमंत्री का नाम घोषित किया, उससे न सिर्फ मध्यप्रदेश बल्कि कई राज्यों में सियासी बड़े समीकरण साध लिए।

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फ़ोटो जन वकालत

अब बात करते है शिव का राज ख़त्म होने के कारणों की

पहला कारण-  2018 के चुनाव में हार
बता दें कि 2018 के चुनाव का पूरा नियंत्रण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों में था। टिकट तय होने में भी उनकी अहम भूमिका रही। हालांकि, परिणाम भाजपा के अनुरूप नहीं रहे और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई। 109 सीटों पर सिमटी भाजपा की हार का कारण कहीं न कहीं शिवराज का चेहरा माना जाने लगा था। हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया की बदौलत भाजपा फिर सत्ता में लौटी और तब भी शिवराज की जगह कुछ और नाम आगे बढ़े थे। इन सबको देखते हुए इस चुनाव में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने चुनाव के सारे सूत्र अपने हाथ में ले लिए। अमित शाह और केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारा गया। टिकट तय करते समय नई रणनीति अपनाई गई और केंद्रीय मंत्री-सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ाया गया। इस बार केंद्र ने शिवराज को बिलकुल पीछे रखा और मोदी के चेहरे और नाम पर चुनाव लड़ा। केंद्रीय मंत्रियों को उतारने के पीछे मंशा भी यही थी कि प्रदेश के लोगों को नया सीएम मिलने की चर्चा खड़ी हो सके।

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फ़ोटो जन वकालत

दूसरा कारण- भाजपा का आंतरिक सर्वे
गौरतलब है कि 2023 के चुनावों से पहले भाजपा ने प्रदेश में आंतरिक सर्वे कराया था, जिसमें भाजपा की स्थिति का पता लगाने की कोशिश की गई थी। सर्वे में भाजपा काफी पिछड़ी नजर आ रही थी, इसे लेकर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने काम करना शुरू किया। बूथ स्तर की बैठकें, संघ के साथ समन्वय और महीनों पहले टिकट तय कर दिए ताकि भाजपा को विरोध को साधने का वक्त मिले। केंद्रीय नेतृत्व ने शिवराज का नाम सीएम के लिए प्रस्तावित करने से परहेज किया और सभाओं में भी सीएम शिवराज का जिक्र कम ही किया गया। आखिर में जब भाजपा के पक्ष में नतीजे आए तो भाजपा ने सीएम के नाम को लेकर मंथन शुरू कर दिया। कहीं न कहीं सर्वे को आधार मानकर शीर्ष नेतृत्व शिवराज का नाम आगे बढ़ाने से कतरा रहा है।

तीसरा कारण- लोकसभा चुनाव की रणनीति
विधानसभा चुनावों के बाद अब 2024 में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। भाजपा ने विधानसभा चुनावों के जरिए लोकसभा की तैयारियों और रणनीति को परखा है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व 2024 में भी प्रचंड जीत के लिए तैयारियां करने में जुट गया है। तीन राज्यों में सत्ता मिलने के बाद अपनी स्थिति इन राज्यों में लोकसभा चुनावों के लिए और मजबूत करना चाहती है। माना जा रहा है कि नई रणनीति के तहत तीनों राज्य में सीएम के लिए नए चेहरों पर भाजपा विचार कर रही है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि भाजपा लोकसभा चुनावों में प्रदेश में जातिगत समीकरण साधने के मूड में नजर आ रही है, इसलिए शिवराज की जगह दूसरे नाम पर विचार किया जा रहा है। 

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