राजेश झाला ए.रज़्ज़ाक|
नेताओं और बाबाओं के घालमेल से भारतीय समाज में सच्चाईयां सामने आने लगी है। पिछले कुछ माह पहले जब मां नर्मदा मैया के नाम से जो बवंडर राजनेताओं ने उठाया था, वह इतना भारी रहा कि प्रदेश में चुनाव के पहले ही छिन्न-भिन्न हो गया। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री से जनता सी.एम. का पद तो छीन सकती है, लेकिन स्वयं द्वारा सत्यापित ‘‘मामा’’ की पदवी तो वह ताउम्र लगा कर रख सकते हैं। उसके लिए कोई याचिका न्यायालय में नहीं लगा सकता। स्वयंभू मामा जी ने बाबाओं को लालबत्ती से नवाजा, बदले में कंप्यूटर बाबा सीएम श्री शिवराज सिंह के विरुद्ध लाल हो गए। ऐसे लाल हो रहे हैं कि, आगामी माह में मामा जी की लाल बत्ती पर संकट मंडराने लगा है। भाजपा सरकार के लालबत्ती वाले बाबा आखिर भाजपा से क्यों रुष्ट हो रहे हैं? पिछले दिनों कंप्यूटर बाबा अपनी भाजपा सरकार के विरोध में आ गए, और हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सुरक्षा मुहैया कराने की गुहार लगाई। देश और प्रदेश में साधु-संतों को एक सूत्र में बांधकर रखने वाली भाजपा सरकार का स्वार्थी धागा टूट गया है। आज साधु-संतों को अपनी जान माल का खतरा महसूस हो रहा है, और उन्हें न्यायालय की शरण लेनी पड़ रही है। सरकार सुप्रीम कोर्ट के पैâसले को उलटने के लिए संसद का उपयोग कर रही है। ऐसे में साधु सन्यासी द्वारा यह कहना कि राम मंदिर विवाद में संसद का सहारा राम भक्त प्रधानमंत्री सहित अन्य भाजपा नेता क्यों नहीं ले रहे हैं? आमजन भी अब सही को सही कहने और सुनने में रुचि रखने लगे हैं। ऐसे में हिंदुस्तान की हिंदू भावना के साथ कुछ नेताओं द्वारा खिलवाड़ करना नैतिकता नहीं है। संत भाजपा का आईना साफ करने में लग गए हैं। अब देखना है, चुनाव में ऊंट किस करवट बैठे।