रतलाम कोर्ट का अहम फैसला : बहुचर्चित ट्रिपल मर्डर केस में पुलिस आरक्षक सहित 7 अभियुक्तों को आजीवन कारावास…

वर्ष-2016 में तीन युवकों की नृशंस हत्या कर हो गए थे फरार…

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रतलाम/जनवकालत न्यूज। रतलाम जिले के औद्योगिक थाना अंतर्गत जवाहर नगर में साढ़े सात वर्ष पूर्व बहुचर्चित ट्रिपल नृशंस हत्याकांड का कोर्ट ने अंतिम सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया है। हत्याकांड में शामिल पुलिसकर्मी सहित 7 अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा अलग – अलग धाराओं में आरोप सिद्ध होने पर सुनाई गई है। वारदात के बाद अभियुक्त पुलिसकर्मी (आरक्षक) कुलदीप आरोपियों को अपनी पुलिस लिखी कार से लेकर फरार भी हुआ था। सभी आरोपियों के खिलाफ हत्या सहित साक्ष्य छिपाने और अन्य गंभीर धाराओं में पुलिस ने प्रकरण दर्ज कर मामले को रतलाम जिला न्यायालय में चिन्हित प्रकरण में शामिल कर पेश किया था।

रतलाम जिला न्यायालय के विशेष न्यायालय के न्यायाधीश प्रयागलाल दिनकर द्वारा जघन्य एवं सनसनीखेज प्रकरण में फैसला सुनाया है। न्यायाधीश दिनकर ने अभियुक्त अंकित उर्फ जटा (27) पिता राजेश सोलंकी निवासी-सज्जन मिल रोड (रतलाम) , राहुल उर्फ ताई (29) पिता रमेशचन्द्र निवासी जवाहर नगर (रतलाम), गोविंदा उर्फ नरेन्द्र (34) पिता बहादुरसिंह निवासी-जवाहर नगर (रतलाम) को आजीवन कारावास एवं पांच-पांच हजार रुपए अर्थदंड सहित धारा 323 सहपठित धारा 34 भादंस में 6-6 माह कारावास तथा एक-एक हजार रुपए का अर्थदण्ड दिया है। इसके अलावा अभियुक्त मनोज उर्फ नेपाल (37) पिता सत्यनारायण निवासी काला पत्थर (उज्जैन), पुलिसकर्मी (आरक्षक ) कुलदीप (36) पिता ओमप्रकाश निवासी जवाहर नगर (रतलाम) को धारा 120-ख भादंवि में आजीवन कारावास एवं पांच-पांच हजार रुपए का अर्थदंड तथा धारा 212 भादंवि में 4-4 वर्ष का सश्रम कारावास तथा दो-दो हजार रुपए अर्थदण्ड, अभियुक्त सुमेरसिंह उर्फ नाना (29) पिता लालसिंह निवासी जवाहर नगर (रतलाम) एवं अंकित राठौर (31) पिता मनोहरलाल निवासी जवाहर नगर (रतलाम) को धारा 120-ख भादंवि में आजीवन कारावास एवं पांच-पांच हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया है।

इस प्रकार दिया था तिहरे हत्याकांड की रात घटना को अंजाम…

रतलाम जिला न्यायालय के अतिरिक्त जिला लोक अभियोजन अधिकारी विजय पारस ने बताया कि फरियादी धर्मेन्द्र द्वारा 7 नवंबर-2016 की रात 10.30 बजे रतलाम जिला अस्पताल रतलाम में इस आशय की देहाती नालिसी लेख करायी थी कि वह तथा उसका दोस्त दुर्गेश, दौलत चावडा, आनन्द चावडा, धर्मेन्द्र उर्फ कालू अण्डा सभी पांचों दोस्त राजीव नगर (मुक्तिधाम) के सामने मंदिर के पास बैठकर सीगरेट पी रहे थे। इस दौरान अभियुक्त अंकित उर्फ जटा, निवासी सज्जन मिल रोड (रतलाम) व राहुल ताई निवासी जवाहर नगर (रतलाम) अपने दो साथियों के साथ बाइक पर बैठकर वहां पहुंचे। फरियादी और उसके दोस्तों के पास आकर गाली देते हुए बोले कि तुम यहां कैसे बैठे हो बड़े तीस मारखा बनते हो। आनन्द ने बोला कि गालियां क्यो दे रहे हो और गाली देने से मना किया तो अभियुक्त राहुल ताई ने आनन्द से मारपीट शुरू कर दी। आनन्द को अभियुक्त राहुल के अन्य साथी ने पकड़ लिया व अंकित उर्फ जटा चाकू लेकर आया व जान से मारने की नीयत से ताबड़तोड़ चाकू से सीने और पेट पर वार किए। तभी धर्मेश उर्फ धर्मेन्द्र बीच बचाव करने आया तो उसे भी अभियुक्तों ने पकड़ लिया और अंकित ने उसके भी पेट व सीने में चाकू से वार किए। इसी बीच दौलत बीच बचाव करने आया तो राहुल ने दौलत को सीने, पेट और पैर में चाकू मारे। इसके बाद अभियुक्तों ने धर्मेंद्र और दुर्गेश पर भी हमला किया। मौके पर अभियुक्तों ने उन्हें पकडक़र बुरी तरह मारपीट की। इससे फरियादी धर्मेंद्र और दुर्गेश के सिर व नाक में गंभीर चोट लगी। वह इनसे छूटकर भागे तो चारों अपनी दो बाइक पर बैठकर मौके से फरार हो गए। तीनों गंभीर युवकों को जिला अस्पताल लेकर पहुंचे वहां पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। रतलाम औद्योगिक क्षेत्र पुलिस ने फरियादी धर्मेन्द्र की रिपोर्ट पर 7 अभियुक्तों के खिलाफ अपराध क्रमांक- 856/16 में धारा 302, 307, 294, 120 बी, 212 भारतीय दंड संहिता एवं धारा 3 (2) (अ) अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाती (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अंतर्गत अपराध पंजीबद्ध किया था।

आरक्षक कुलदीप ने आरोपियों को कराया था अपनी कार से फरार-

वारदात की रात अभियुक्त पुलिसकर्मी (आरक्षक) कुलदीप पिता ओमप्रकाश आरोपियों को महू-नीमच मार्ग पर स्थित बिलपांक टोल नाका पर से एक सिल्वर रंग की मारूती कार क्रमांक एमपी-09 सीडी-5873 से लेकर फरार हुआ था। जांच में आरोपियों को फरार कराने और साक्ष्य छिपाने के आरोप में पुलिसकर्मी कुलदीप भी आरोपी था और उसकी कार जब्त की गई थी। पुलिस विवेचना उपरांत न्यायालय में पुलिसकर्मी (आरक्षक) कुलदीप की कार का सीट कवर भी जप्त कर फोरेसिंक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। इसके अलावा पुलिसकर्मी (आरक्षक) कुलदीप की मोबाइल डिटेल भी प्रकरण में महत्वपूर्ण साक्ष्य बतौर प्रस्तुत होकर साक्ष्य छिपाने के आरोप में सिद्ध हुआ। पुलिस की नेमप्लेट लगी हुई चार पहिया वाहन के माध्यम से अभियुक्त आरक्षक कुलदीप आरोपीयों को वारदात के बाद फरारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अभियुक्त कुलदीप के उक्त साक्ष्य छिपाने के आरोप के सीसीटीवी फूटेज भी न्यायालय में फैसला सुनाने में अहम साबित हुए।

अभियोजन ने यह तर्क देकर अभियुक्तों को दिलाई सजा-

प्रकरण में सफल पैरवी जिला लोक अभियोजन अधिकारी गोविन्द प्रसाद घाटिया, अतिरिक्त जिला लोक अभियोजक विजय कुमार पारस एवं तत्कालीन विशेष लोक अभियोजक एट्रोसिटी एक्ट नीरज सक्सेना द्वारा की गई। प्रकरण में अंतिम तर्क डीपीओ घाटिया द्वारा प्रस्तुत किए गए। जिला लोक अभियोजन अधिकारी घाटिया ने न्यायालय में अभियोजन की ओर से कुल 33 साक्षियों के बयान दर्ज करवाए। उन्होंने घटना के समर्थन में मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्य सहित लिखित बहस प्रस्तुत कर आरोपियों को अधिकतम दण्ड से दण्डित किए जाने के तर्क प्रस्तुत किए थे। न्यायालय द्वारा अपने निर्णय मे इस बात को स्पष्ट किया है कि विधि को अपराधिकरण की ओर से मिलने वाली चुनोतियों का सामना करना चाहिए। डगमगाती दुर्बलता को घेरने वाले मत्तप्राय: भावनाएं छिपी नहीं रह सकती अथवा सुधारवादी भावनाएं किसी युक्तियुक्त दण्डादेश प्रणाली के किसी काम नहीं आ सकती। गलत धारणाओं पर टीके हुए उदारवादी दृष्टिकोण का समर्थन बिलकुल नहीं किया जा सकता। न्यायालय का यह कर्त्तव्य है कि वह हर मामले मे अपराध की प्रकृति और उस रीति का जिसमे अपराध किया गया हो ध्यान मे रखते हुए उचित दण्डादेश पारित करे। इस प्रकार न्यायालय द्वारा अभियोजन घटना को प्रमाणित मानते हुए सभी अभियुक्तगण को कठोर दंड से दोषसिद्ध किया है।

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