“नेताओं की रस्साकसी” से भाजपा हो रही कमजोर….

रतलाम | ए. रज़्ज़ाक

रतलाम जिला भाजपा में “राज्य वित्त आयोग अध्यक्ष” की लाल बत्ती का दबदबा तो शिवराज सरकार में भी रहा| तब यह जन चर्चा चौराहे-चौराहे पर आम थी, कि जीतने वाले जनप्रतिनिधि विधायक पद तक ही सीमित रहे| हालांकि रतलामी लोग उन भाजपाई को भी जानते हैं, जिन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ राजनेता से सांठगांठ कर रखी है| कभी “फूल छाप कांग्रेसी” आज “पंजा छाप भाजपा” नजर आ रही है| मालवी में कहावत है कि हमेशा “पाड़ों की लड़ाई में बागर का नाश” होता आया है| नेता हमेशा अपने पाले हुए मुट्ठीभर के दम पर ख़म ठोकते रहे हैं, और लोकतंत्र में कब, कौन, किस पार्टी का जमाई राजा बन जाता है, बारातियों (कार्यकर्ताओं) को तो पता ही ऐन वक्त पर चलता है| ऐसे में कुछ कार्यकर्ता रूठते भी हैं, तो ना तो कोई अन्य बाराती उसकी पर वह पालता है, और ना ही घराती (पार्टी प्रमुख) गंभीर होते हैं| पूर्व गृह मंत्री भाजपा को अपनी मां मानते हैं| ऐसे में कुछ शरारती यह कहते हुए भी नहीं  चूक रहे हैं कि भाजपाई पुत्र कांग्रेसी जमाई नहीं बन सकते क्या? राजनीति में नेता वही बनता है, जो सभी चारों विधाओं में पारंगत होता है| भाजपा में श्री चेतन कश्यप गुट और श्री हिम्मत कोठारी ग्रुप में हमेशा वाक युद्ध से सियासत यदा-कदा गर्माती रहती है| लेकिन बुद्धिजीवी जानते हैं, कि पूर्व मंत्री श्री कोठारी साहब ने ही शहर में भाजपा को स्थापित किया है, उनके संघर्ष को आज की पीढ़ी नजरअंदाज कर श्री कोठारी को पार्टी से निष्कासित करने की मांग उठा रही है| वहीं भाजपा विधायक को नगरवासियो ने दोबारा विधानसभा इसलिए पहुंचा है, कि भाजपा की लोक कल्याणकारी नीतियों को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाया है| ऐसे में भाजपा नेताओं के टकराव से लोकसभा चुनाव पर निश्चित रूप से प्रतिकूल असर पड़ेगा| हालांकि कांग्रेस में भी गुटीय बदबू तीव्र गति से फैल रही है जिसमें लोकसभा चुनाव लड़ने वाले नेता भी फूंक फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं|

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