रतलाम / सैलाना | अल्ताफ़ अंसारी की रिपोर्ट
मध्यप्रदेश शासन की स्कूल चले हम अभियान में जहां एक और ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को शिक्षा की ओर लाने के लिए शासन द्वारा नित नए नए तरीके अपनाए जाते हैं जमीनी स्तर पर लाने के लिए बच्चों को अनेक योजनाओं का लाभ देकर स्कूल में विद्यार्जन करने के लिए लाया जाता है लेकिन यह प्रयास जमीनी स्तर पर कितना कामयाब होता है इसका समय-समय पर उदाहरण देखने को मिलता है| ऐसा ही एक उदाहरण मिला है मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के सैलाना विधानसभा में ऐसे भी स्कूल है जहां पर शिक्षा प्रदान शिक्षक और शिक्षिकाओं के आगमन और प्रस्थान का समय तो शाला की दीवारों पर अंकित है प्रातः काल 10:30 से लेकर 4:30 विद्यार्थियों के लिए और प्रातः काल 10 बजे से सायकाल 5:00 बजे शिक्षकों के लिए यह बातें शाला की दीवारों पर शोभित और सुंदर लगती है लेकिन यथार्थ में यहां तो कुछ और ही होता है कक्षाओं में उनकी उपस्थिति निर्धारित समय पर नहीं होती है जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण सैलाना तहसील के खाखरा कुड़ी नामक गांव का प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय है यहां पर ग्रामीणों का कहना है कि ना तो शिक्षक समय पर आते हैं और ना समय पर जाते हैं 11:00 बजे आते हैं और 3:00 बजे अपने कर्म स्थली से रवाना भी हो जाते हैं और तो और ना ही शिक्षा की गुणवत्ता है बच्चे की उपस्थिति भी माध्यमिक विद्यालय में महज 15 छात्रों के अंदर है और अध्यापकों की संख्या 2 है यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि शिक्षा की गुणवत्ता किस प्रकार की है और शिक्षा के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों की क्या भूमिका है शिक्षकों की ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण छात्रों के प्रति जो अरुचिकर रवैया को दर्शाती है शिक्षा की गुणवत्ता के गिरते स्तर को देखकर वहां के लोगों ने अपने होनहारों को निजी विद्यालय की ओर भेजना शुरू किया और यथास्थिति है कि वर्तमान समय में स्कूल के अंदर महज 20 से अधिक बच्चे भी नहीं है और स्कूल में 2 शिक्षक की मौजूदगी है जो जिम्मेदारों को और अधिकारियों को सोचने पर मजबूर कर देगी|