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लोकतंत्र में ‘मैं हूं ना’ शब्द आमजन को करता है घायल…

breaking देश

मैं कांग्रेस, मैं भाजपा के फेर  में ना उलझे जनता….

राजेश झाला ए ऱजाक
लोकतंत्र में ‘मैं’ (स्वयं भू) का कही स्थान नहीं है। फिर भी आज जनतंत्र में ‘तू-तू-मैं-मैं’ का महत्व-कद क्रमशः बढ़ता जा रहा है। लोकतंत्र में लोकसभा चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से तथा राज्यसभा चुनाव परोक्ष-अप्रत्यक्ष प्रणाली से प्रजातंत्र में सम्पन्न होते आये है। इसी प्रकार हमारे देश के नेता कई बार भावावेश में स्वयंभू जैसे भाषण देने लगते है। जबकि देश की अधिकांश राजनैतिक पार्टीयों के नियम कायदे भी लोकतांत्रिक ही है। कई भाजपाई विचारक, श्री नरेन्द्र मोदी पर भी ‘मोदी भाजपा’ जैसे तंज कसने में पीछे नहीं रहते। और देशवासियों को उपरोक्त तंज की हकीकत भी दिखाई देती है। क्योंकि वर्तमान में भारतीय जनतापार्टी के पित्र पुरूषों की लम्बी फेहरिस्त में कुछ ही आज सक्रिय है, जो मोदी विचारक है, और जो निषक्रीय है वों अप्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से ‘मोदी की स्वयं भू (मैं ही भाजपा हूं)’ के विचारों से इत्तेफाक नहीं रखते। भाजपा नेता स्वयंभू होेने के बावजूद स्वयं के मुंह सें नही कहता कि ‘मैं भाजपा हूं’। किन्तु राहुल गांधी ने जरूर कह दिया ‘मैं कांग्रेस हूं’। इसी को कहते हैं समझ-समझ का फेर । जनतंत्र में कोई खुल्लम-खुल्ला कहता है, तो कोई गुपचुप स्वयंभू कहलाने में फक्र समझता है। गुलाम हिन्दुस्तान के समय से ही कांग्रेस की नीतियों को देशवासी जानता-पहचानता है। यही कारण रहा कि कांग्रेस ने देश में वर्षों तक राज किया। चुंकि ‘प्रकृति का नियम है परिवर्तन’ इसी नियम के तहत वर्तमान में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सिमटने का दौर चल रहा है। और कांग्रेस को अपनी पहचान पुख्ता रखने के लिए अन्य पार्टीयों एवं क्षैत्रिय दलों से हाथ मिलाना पढ़ रहा है। समय चलायमान होता है। यदि श्री राहुल गांधी अपने युवा एवं अनुभवी बुजुर्गों को तवज्जों देंगे तो हो सकता है। कांग्रेस आमजन में पुनः विश्वास कायम कर ले। लोेकतंत्र में ‘मैं,हूं,ना’ शब्द के दोहरे मायने हैं पहला ‘मैं हूं ना’ अर्थात् मैं ही सर्वोपरि हूं। वहीं दुसरा शब्द ‘मैं हूं ना’ अर्थात् मैं नहीं हूं। इस प्रकार कुशाग्र बुद्धि वाले आमजन को शब्दजाल में फसाकर रखते है।

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