बेरोजगारों को चाहिये रोजगार तभी होगा देश का विकास
रतलाम | डॉ. सैय्यद अनवर अली
लोकतंत्र में लोग जिस-जिस वर्ग, जाति, धर्म, सम्प्रदाय लिंग के होते है। नेता लोग चुनावी राजनीति में सभी तपकों, को साधकर, प्रजातंत्र को मजबूत करने का भाषण देते आये है। यही कारण हैं कि अब वर्ग विशेषों में अस्तित्व की लड़ाई का श्रीगणेश हो गया है। आज जनतंत्र की नींव इन्हीं कारणों से कमजोर होने लगी है। भारत में चुनावी महोत्सव में सत्ता एवं विपक्ष कई ऐसी घोषणाएं कर रहे है। जिससे भारत का एक बहुत बड़ा तपका गरीबी से ऊपर नहीं आना चाहता है। ये वर्ग सरकार की लोक कल्याणकारी योजनाओं का जीवन पर्यन्त लाभ लेना चाहता है। जबकि सरकार के पास कोई ऐसा उपाय नहीं है, कि वो गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों को आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ कर सके। देश में गरीबों, दलितों के नाम से योजनाओं का लाभ लेने वाला कभी सक्षम बनने का प्रयास तक नहीं करता है। जिससे देश में आने वाली पीढ़ी पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ेगा। हमारे देश के कर्णधारों को चाहिये कि वह देशवासियों को स्वालम्बी सक्षम, संस्कारवान बनाये एवं सुसंगठित भारतीय समाज का निर्माण करें। ना कि देशवासियों को आलसी अकर्मण्य बनने के लिए योजनाओं पर योजनाएं लांच की गई। आज देशवासियों के हाथों में काम नहीं हैं। नेता खेरात बांटकर अप्रत्यक्ष ‘मत’ को खरीदने की साजिश में लगे हुए है। जबकि भारतीय बुद्धीजीवियों का वास्तविक तर्क हैं कि जो पैसा योजनाओं पर खर्च कर देशवासियों के साथ खिलवाड़ कर रहे है। उन पैसों से देशवासियों को रोजगार उपलब्ध करवाये। ताकि मूल्कवासियों की आने वाली पीढ़ी सुदृढ़, आत्मनिर्भर एवं आत्म सम्मान के साथ देश सेवा में लग सके ।