
राजेश झाला “ए रज़ाक”
मानव समाज दुनिया भर के धर्म ग्रंथो को मानने वाला सजक समाज है। जब मुट्ठीभर समाजकंटक मानव को दिगभ्रमित कर अपने स्वार्थ सिद्धि के सफर में लग जाते हैं, तो आध्यात्मिक जगत का ह्रास होता है। जिसके परिणाम स्वरुप मानव जगत में धार्मिक जंग परवान चढ़ जाती है।
साकार और निराकार दो ऐसे पहलू हैं जिस पर आमजन अपने-अपने तरीके से समाज में वकालत करते हैं। जैसे यदि “र” शब्द में “आ” की मात्रा लगा दें तो वह शब्द “रा” हो जाएगा। अब “रा” का अर्थ क्या है? वैसे ही “म” शब्द का अर्थ क्या है? “धा” शब्द का अर्थ क्या है? आदि आदि शब्दो को मिलाकर देखे तो इनका अर्थ क्या निकलता है? जैसे “राधा”, “राम” शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है? इन शब्दो को साकार रूप में कैसे महिमा मंडित किया गया है अथवा निराकार रूप में कैसे महिमा मंडित किया गया है।


वक्तागण अपने अपने विवेक से मानव समाज में अर्थोघाटन अर्थात् सत्य अर्थ का खुलासा करते हैं। वही कुछ विकृत स्वभावी तत्व अपने मौलिक ज्ञान से शब्दो का ऐसे संधि+ विच्छेद करने लगते हैं। जिससे मानव समाज में ना-ना प्रकार की भ्रांतियां उपजने लगती हैं। और युवापीढ़ी भ्रमित होने लगती हैं। यदि समय रहते दुनियाभर के धर्मगुरु व धर्मवैत्ताओ ने अपने अपने धर्मो के प्रति सजगता नहीं दिखाई तो भविष्य में पूरे जगत के धर्मो में शातिर दिमाग वाले तत्व अपने अल्पज्ञान को दैदिप्यमान करने में सफल होते नजर आएंगे, जो मानव संसार के लिए दुःख का कारण हो सकता हैं। आज विश्व में “वसुदेव कुटुंबकम” के भाव को चरितार्थ करने की आवश्यकता है।