रतलाम | नगेन्द्र सिंह झाला
पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया ने केंद्र की मनमोहन सरकार यूपीए से रतलाम की पेयजल के लिए पाइपलाइन व्यवस्था के नाम पर लगभग 32 करोड रुपए की राशि निगम को दिलवाई थी लेकिन आज तक रतलामी नागरिक प्रतिवर्ष गर्मी में पेयजल के लिए तरसते हैं, वहीं बरसात में गंदे पानी से जूझते हैं। यानी कि रतलामी पानी के नाम पर हमेशा ठगाता आया है मिनी स्मार्ट सिटी में सड़क पानी संबंधित सुविधाएं मुहैया होगी, वैसे तो मिनी स्मार्ट सिटी की घोषणा 26 जनवरी 2016 को सीएम चौहान ने की थी। लेकिन ढाई साल बाद मुख्यमंत्री को रतलाम वासियों की कीचड़ भरी सड़कों की ओर पानी पर होने वाली राजनीति की याद आई , और 25 करोड़ से मिनी स्मार्ट सिटी के सगुफे को फिर से पिटारे में से निकाल कर तथा शहर विकास के नाम पर फिर आम जन की भावनाओं को अपने पक्ष में करने का सुलभ साधन ढूंढ निकाला। वरना केंद्र और राज्य में भाजपा का बीज होने के बाद भी चुनावी वर्ष में जनता की खैर खबर लेने निकले सीएम को स्थानीय नेताओं द्वारा घोषणावीर की घोषणाओं को याद दिलवाना पड़ रहा है। तब जाकर घोषणावीर राजनीतिक लाभ हानि के आधार पर कार्यों को मूर्त रुप देने की रणनीति बनाते हैं। यही कारण है कि जो मेडिकल कॉलेज वर्षों पहले बन जाना था वह अब अस्तित्व में आ रहा है। रतलामी जनता का यह भ्रम अब टूटने लगा है कि नगर सरकार प्रदेश सरकार केंद्र सरकार किसी एक पार्टी की होने से आमजन की जल्दी सुनवाई होगी तथा तत्काल जनसुविधाएं सत्ताधारी उपलब्ध करवा देंगे। रतलाम में सत्ता पक्ष पार्षदों को भी विपक्ष की तरह सड़क और ऑफिस में धरना प्रदर्शन करना पड़ते हैं। विगत दिनों रतलाम शहर महिला कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती अदिति दवेसर के नेतृत्व में जब सड़क से जुड़ी मांगों को क्षेत्रवासियों के साथ उठाया तो स्मार्ट सत्ताधीशों ने जिला प्रशासन पर दबाव बनाया। जिसकी पूरे जिले में तीखी प्रतिक्रिया हुई। आमजन चर्चा यह थी कि सत्ताधारी स्वयं काम नहीं करते और जनप्रतिनिधि जनता की आवाज बुलंद करें तो परोक्ष रूप से आमजन पर दबाव की राजनीति हावी होने लगती है। नेता धनबल के दम पर आमजन को लुभाने में लगे हैं लेकिन मतदाता मौन है।
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