प्रकाश तंवर।
देश के लगभग अधिकांश सफेदपोश दो पैर पर खड़े होकर कभी मिट्ठू की बोली बोलते हैं, तो कभी कौवे की आवाज में लोकतंत्र के नाम पर मानवी घटनाओं पर भाषण चाटन करने में पीछे नहीं हैं। क्योंकि देश में लोकसभा के चुनाव हैं। लगभग सभी राजनीतिक दल के नेता देशवासियों की ज्वलंत समस्याओं से किनारा कर सैनिक कार्यवाही पर आरोप-प्रत्यारोप करके वीर शहीदों के परिवारजनों को धोती राजनीति में घसीट ने में लगे हैं। देश के बेरोजगारों पर जिम्मेदारों द्वारा स्थाई काम की कोई पहल नहीं की जा रही है। देशवासी शोकसंतप्त सहित परिवारजनों के दुख में संवेदनशील है। वहीं कुछ सफेदपोश जश्न मना रहे हैं। तो कुछ जाबांजो की काबिलियत पर सवाल उठा रहे हैं छिछोरे सफेदपोश को सियासतबाजी में यह भी दिखाई नहीं दे रहा, कि उन 40 से अधिक शहादत देने वाले सपूतों की अर्धांगिनी, बेटे-बेटियों, भाई-बहनों, माता-पिताओं एवं करीबी सगे संबंधियों पर क्या गुजर रही है, जिन्होंने अपने घर का चिराग बुझाकर देश की अमर ज्योति को जिंदा रखा। आज हमारे नेता सत्ता के नशे में इतने मदहोश हो रहे हैं, कि उन्हें यह पता नहीं कि हमारे शहीदों की तेहरवी, पिंडदान सहित अन्य मोक्ष वीरगति को प्राप्त हुए शहीदों की मिट्टी को किस पवित्र नदी में प्रवाहित की गई है। मंचों से भाषण देने वाले नेता जी ने कितनी बार उनके घर जाकर शोकाकुल परिवार को ढांढस बंधवाई है। देश ईट का जवाब पत्थर से देना जानता है। देश हमारे जवानों की शहादत के प्रतिशोध में जो कुछ भी कर सका, वो किया। और आगे भी देश के जागरूक प्रहरी राष्ट्र की चौकसी में दिन रात लगे हुए हैं। लेकिन देश में किसी प्रकार के राजनीतिक दल के नेताओं को मंचों से अनर्गल भाषणों से बचने की जरूरत है।

