राजेश झाला ए. रज़्ज़ाक
कानूनी डंडे से डरकर मानवता शर्मसार हो गई| देश प्रदेश में आए दिन सड़क दुर्घटनाएं आम बात है| कई बार पीड़ित व्यक्ति की मदद के लिए जन सामान्य इंसानियत का परिचय नहीं देते है | बल्कि अपनी होशियारी में दम भरते हुए यू कहते हैं कि, फला हादसा मेरे सामने हुआ लेकिन कौन लफड़े में पड़े, पुलिस 10 सवाल करें और हम अपना समय खराब क्यों करें, आदि कई बातें कर लोग ह्रदय के अंदर की कोमल पवित्र भावनाओं को निष्ठुर बनाने में लगे हुए हैं| क्या दुनिया के सभी शास्त्रों में मानवसेवा का बखान नहीं है ! हम भिन्न-भिन्न धर्मावलंबी हो सकते हैं| लेकिन मानवीय मूल्यों पर सभी धर्मावलंबी खरे उतरने में कभी पीछे नहीं रहते हैं, तो फिर हम इंसान को जख्मी छोड़कर क्यों मुंह फेरने में लगे हैं | भारतीय संस्कृति सदैव भारतीय समाज को एक दूसरे से बांधे रखती है, तो फिर हम किस दिशा में जा रहे हैं | आज हमें अपने संस्कारों को पुनः ताजा करने की आवश्यकता है| दुर्घटना संबंधी चेतावनी में सरकार शासन सहित स्वयंसेवी संस्थाओं को भी आगे आने की जरूरत है, ताकि आमजन किसी भी वक्त कहीं भी पीड़ित की मदद करने के लिए तत्परता दिखाएं, जिससे जीवन और मौत से लड़ने वाले शख्स को तुरंत उपचार मिल सके| यही सच्ची मानवीय सेवा भक्ति है | स्मरण रहे विगत दिवस दो पहिया वाहन से इंदौर से उज्जैन जा रहे, पंडित सुधीर शर्मा की पत्नी नेहा की कार से टक्कर हो गई, किंतु सैकड़ों वाहनों ने लहूलुहान पीड़िता की मदद करना उचित नहीं समझा | यदि समय पर उपचार मिल जाता तो 5 वर्षीय कुमारी माही की मां आज जिंदा रहती|

