मानवीयता की देवी है संत मदर टेरेसा….

दिनहीन को ममता की चादर में लपेटने वाली संत की याद दिलो में जिंदा हैं…

‘दर्द दिल के वास्ते, पैदा किया इंसान को,
वर्ना फरिश्ते कम न थे, इबादत खुदा के वास्ते।’’

राजेश झाला ए. रज़्ज़ाक

‘एग्नेस गोंग्शे बोयाक्षियू’ नाम से देश दुनिया में कम ही लोग जानते है। लेकिन ‘यथा नाम तथा गुण’ की प्रतिमूर्ती ‘मदर टेरेसा’ के नाम में ‘गोंग्शे’ शब्द आया है। जिसका अर्थ है। ‘गुलाब की कली’ अर्थात् मां टेरेसा के जीवन चरित्र से, उन अनाथो, गरीबों, अपाहिजों, बीमारों, विधवाओ, परित्यक्ताओं और अभावों में जीवन जीने वालों को जीवन में, आज भी माता टेरेसा की ममत्वरूपी गुलाब की खुश्बू की अनुभूति होती है। दुनिया में भांती-भांती के धर्म समुदाय है। जिसमें कुछ ऐसे विरले व्यक्तित्व के धनी होते है। जिनका ‘कद’ धर्म विशेष, पंथ विशेष से भी ऊपर उठा रहता है। जो मानवमात्र एवं प्राणीमात्र की सेवा में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देते है। विदेश में जन्मी माता टेरेसा की कर्मभूमि जब भारतभूमि बनी, तो भारतवर्ष की रज का ही चमत्कार है कि मां भारती के आंचल में रहकर मानवेसवा में लीन मदर टेरेसा को ‘संत’ बना दिया। भारत की तपोभूमि का बखान वेटिकन सिटी में संत मदर टेरेसा के माध्यम से एक बार फिर हुआ। ‘प्रकृति का नियम है परिवर्तन’ ठीक इसी बिंदू के परिपालन में भारतीय संत मदर टेरेसा को मात्र 19 वर्ष में ‘संत’ घोषित किया गया। ईसाई धर्मानुसार जब पवित्र व्यक्तित्व को ‘धन्य’ घोषित किया जाता है, तो संत की घोषणा में लगभग 50 वर्ष का अंतर रखते है। संत मदर को भारतीय सदैव मानवीयता की देवी के रूप में याद करता रहेगा। क्योंकि अल्लाह, ईश्वर ने मनुष्य को सेवा कार्य के लिए इस मृत्युलोक में भेजा है। आज देश और दुनिया में आपसी भाई चारे, प्रेम, मोहब्बत की जरूरत है। वर्तमान में विघ्नसंतोषी तरह-तरह की कुटनीति से ‘इंसानियत का गला घोटने में लगे है। दुनियाबी लोग प्राकृतिक आपदाओं से निजात पाने के लिए अध्यात्म का रास्ता अख्तयार करते है। और परम सत्य की खोज में अपने जीवन की आहुती देते है। वहीं तामसी प्रवृत्ति वालों का एक बड़ा समूह दुनिया के हर क्षैत्र में सक्रिय है। जो सभ्य समाज को खण्डीत करने में लगे है। आज मानव समाज में समदृष्टि एवं सर्वधर्म समभाव के मंत्र को फूंकने की आवश्यकता है। संत मदर टेरेसा पर कुछ इक्के-दुक्के सपेâदपोश जो निम्न एवं हल्की मानसिकता के शिकार है, ऐसे तत्व अनाज में कंकड़ , कूड़े कचरे की तरह दुनिया भर में मिल जायेंगे। जो मदर के मानवीय कार्यों पर भी घिनोनी राजनीति कर बयानबाजी करने से बाज नही आ रहे है। अब ऐसे कुण्ठीत तत्वों को भारतवासी पहचानने लगे है। 61 वर्ष उम्र में सन् 1979 में मदर टेरेसा को जब ‘नोबल पुरूस्कार’ से नवाजा। तो उनके सम्मान में भोेज रखा गया। जिसमें उन्होंने भोज में जाने से इंकार करते हुए कहा कि भोजन में खर्च होने वाला 1,92,000 डॉलर मुझे दे दो। ताकि इन पैसो से लगभग 15 हजार गरीबों को खाना खिला दूंगी। क्योंकि सन् 1995 में भी पोप पॉल-6 ने कार भेंट की, तो कार को नीलाम कर असहायो के लिए पैसे जुटा लिए। 70 वर्ष की आयु में ‘भारतरत्न’ से सम्मानित हुई। संत मां ने जब हवाई यात्रा की तो फ्लाइट में लगभग अधिकांश यात्रियों का जूठा भोजन इकट्ठा कर लाई, और बोली कि ये खाना हमारे काम आयेगा। अल्बानिया में २६ अगस्त 1910 में जन्मी ‘एग्नेस गोंग्शे बोयाक्षियू’ (मदर टेरेसा) 41 वर्ष की आयु में 05/- (पांच रूपए) लेकर भारत आई थी। तथा दिन-दुखियों के लिए लोगों से पैसे की मदद मांगती थी। एक बार एक व्यक्ति ने पैसे देने के बजाये, उनकी हथेली पर थूक दिया। किन्तु ममता की सागर मां को कोई क्रोध नहीं आया। बल्कि दुसरा हाथ भी उस व्यक्ति के आगे कर बोली कि अब इस हाथ में भी मेरे दिन-दुखी बच्चों के लिए दे दो। इस पर व्यक्ति का हृदय परिवर्तन हो गया। सन् 1979 के दंगे में 100 से अधिक की मौत हो गई थी, और कई घायल थे। तब भी मदर टेरेसा दो ट्रक भरकर खाने-पीने का सामान कलकत्ता लेकर पहुंची। मदर अपने साथ लाई खाद्य सामग्री पर ही सोयी। जबकि टाटा स्टील के जिम्मेदार मदर का इंतजार करते रहे। मदर ने दंगा पीड़ितों के घर-घर जाकर सांत्वना दी। इसी प्रकार जब इजरायल और फिलिस्तीन में युद्ध चल रहा था। तो ‘अस्थाई संघर्ष विराम’ करवाकर, अस्पताल में फसे 37 बच्च्चों को निकालकर लाई। अपने 87 वर्ष के जीवनकाल में देश-दुनिया के लोगों के हृदय में उस वक्त स्थाई रूप से बस गई, जब 05 सितम्बर 1997 में अपने शरीर से अंतिम श्वास ली। मदर टेरेसा ने माानव के दिलों पर राज किया। उनके व्यक्तित्व के आगे दुनियाबी सम्मान बहुत बोने है। 05 रूपए लेकर भारत आने वाली 05 सितम्बर को 65/- (पैसठ रूपए) की साधारण साड़ी में परलोक को सीधार गई। ऐसी पुण्य आत्मा संत मदर टेरेसा की 21 वीं पुण्यतिथि पर राष्ट्रीय साप्ताहिक जनवकालत का शत्-शत् वंदन।

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