सत्ता के खिलाफ मतदाताओं का आक्रोश…

राजेश झाला ए.रज़्ज़ाक|

सनातन धर्म अनुसार सुहाग पड़वा पर गौ माता सहित बेलो, बछड़ों व अन्य मवेशियों को स्नान करा कर उनको आकर्षक बनाने के लिए  सिंगो पर फूँदे बांधे जाते हैं| गले को सजाया जाता है एवं ग्वालो का मान-सम्मान समाज द्वारा किया जाता है| स्मरण रहे, गौ माता में देवी देवताओं का वास होता है| इसी कारण हिंदुस्तान में गाय पूजा का अपना अलग महत्व है| आधुनिक दौर में विकृत राजनीति के चलते अब ग्वालो  की पूछ परख कम हो गई है| सियासत में नया नाम गौ रक्षक के नाम से प्रचारित होने लगा है| ग्वालो का मन एवं ह्रदय माधुर्य से लबरेज है| वहीं वर्तमान में कुछ तथाकथित गौ माता के नाम पर सिर्फ राजनीति रोटियां सेकने में लगे हैं| ग्वाले किसी राजनीतिक पार्टी विशेष के ना होकर कृष्ण भक्त होते हैं| वहीं आज कुछ शरारतीयो  ने लोकतंत्र में हमारे आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी के जयघोष को नारो में तब्दील कर दिया है| जिससे भारतीय समाज में कई कई बार तनाव की स्थितियां पैदा हो जाती है| विगत वर्षों में झांक कर देखें तो देशवासियों के ह्रदय में पीड़ा होती है कि, आज यह कहा जाता है कि “ हाय भारतवर्ष तेरी कहां गई संतान वो, जो दूसरों की जान पर देती थी अपनी जान जो, हाय भारत है वही, पृथ्वी वही, धेनु वही, बस एक कृष्ण चंद्र ही है नहीं, जिससे तू है रो रही”!  कुछ राजनीतिक लोग मतदाताओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर नित नए प्रयोग करते हैं| लेकिन मतदाता चुप है, जनवकालत के सर्वे में नागरिकों में सत्ता के खिलाफ आक्रोश नजर आ रहा है| इस आधार पर राजनीतिक विशेषज्ञ कयास लगा रहे हैं कि अबकी बार रतलाम शहर की प्रेमलता संजय दवे सहित प्रदेश भर में कांग्रेस उम्मीदवारों को मतदाता राजनितिक वैतरणी पार करवाने का मन बना रहे हैं|

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