राजेश झाला ए. रज़्ज़ाक
प्रजातंत्र में राजनीतिक पार्टियों के अनुयाई समय और मौका देख कर अपना हित साधने के लिए अपनी पार्टी छोड़ देते हैं, और दूसरी पार्टी में भर्ती हो जाते हैं| रतलामी दादा निर्दलीय नेता रहे, फिर कांग्रेसी बने, फिर कांग्रेस छोड़ी और अब फिर से कांग्रेस में भर्ती हो गए| राजनीति में दलबदल का खेल पुराने समय से चलता आ रहा है| रतलाम जिला कांग्रेस में कुछ दिन पहले ही नए अध्यक्ष की नियुक्ति हुई और गुटबाजी के चलते कुछ शातिरों ने जिला कांग्रेस को निपटाने के लिए कमर कस ली है| विगत दिवस ग्रामीण ब्लॉक कांग्रेस के पद पर नियुक्ति को लेकर कांग्रेस के दो धड़े अलग-अलग बयान बाजी में लग गए हैं| जिससे आमजन में कांग्रेस की छवि खराब हो रही है| जबकि कांग्रेसियों को पार्टी फोरम पर उक्त विवाद को निपटाना था| आम चर्चा यह है कि यदि भाजपाई कांग्रेसी में पद लेता है, तो इससे कांग्रेस को क्या नुकसान? जबकि भाजपाई तो कांग्रेसियों के भाजपा में आने पर स्वागत करते हैं | वहीं कांग्रेसियों को गैर कांग्रेसी गले नहीं उतर रहा है स्मरण रहे नए कांग्रेसी सेवाभावी हैं, समाजसेवी है इसीलिए भाजपा ने केश शिल्पी मंडल का सदस्य बनाना चाहा था, किंतु नया ग्रामीण ब्लॉक अध्यक्ष जितेंद्र परमार ने स्वयं को कांग्रेस विचारधारा वाला बताते हुए भाजपा का पद नहीं लिया | इसके बावजूद गुटबाजी के चलते कांग्रेस को कमजोर करने में असंतुष्ट ओं का हाथ है, जो “कांग्रेस के हाथ के पंजे” को लगातार कमजोर करने में लगे हैं| विधानसभा चुनाव सर पर है, और रतलाम जिले के जिम्मेदार नेता एक दूसरे की टांग खींचने में लगे हैं, जिसका फायदा सत्ता धारियों को मिलेगा | आज कांग्रेस में कार्यकर्ता काम और नेता बहुतायत में हैं| स्वर्गीय पंडित मोतीलाल दवे, स्वर्गीय शिवकुमार झालानी एवं वरिष्ठ नेता कांग्रेस के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष जनाब हाजी खुर्शीद अनवर के युवा काल में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की बड़ी बड़ी फौज हुआ करती थी | वर्तमान में विगत दिनों शहर युवा कांग्रेस के अध्यक्ष मयंक जी जाट के नेतृत्व में जो युवाओं का जनसैलाब सड़क पर कांग्रेस के लिए उतरा तो पुराने वरिष्ठ नेताओं का नेतृत्व रतलाम जिले के लोगों को याद आया| किंतु रतलाम जिला कांग्रेस में जो अनर्गल बयानबाजी मीडिया में चल रही है, जिससे कांग्रेसी वातावरण में ग्रहण लगने लगा है|

