लोकतंत्र के नेता पूंजीपतियों की मुट्ठी में….

राजेश झाला ए. रज़्ज़ाक

प्रजातंत्र की राजनैतिक पार्टियों का दायरा अब असीमित होने लगा है। राष्ट्रीय दल, क्षैत्रिय दल, अब जाति-धर्म का घालमेल कर स्वस्थ लोकतंत्र को कमजोर करने में भी गुरेज नहीं कर रहे है। राजनैतिक दल अपने विभिन्न प्रकोष्ठों के साथ-साथ प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से अपनी-अपनी पार्टी में वर्गवाद को हवा दे रहे है। जिससे भारतीय समाज के घटक समाज अपनी-अपनी ताकत शक्ति परीक्षण पार्टी नेताओं के सामने बता रहे है। मजे कि बात तो यह है कि अब जनतंत्र में नेता मंत्री भी जाति,धर्म,पंथ,वर्ग, क्षैत्र लिंग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यक, पिछड़ा, सामान्य, महिला-पुरूष, आरक्षित-अनारक्षित आदि पैमाने के आधार पर जनप्रतिनिधि बनते है। जिससे विशाल प्रजातंत्र की मजबूत कड़ी अब ढ़ीली पढ़ने लगी है। क्योंकि लोकतंत्र में प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से पूंजीवाद हावी होता जा रहा है। परिणाम स्वरूप कॉर्पोरेट जगत की मुट्ठी में नेता मंत्री आ गये, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर भारतीय सांख प्रभावित हो रही है। रफाल लड़ाकू विमान सौदे में अनिल अम्बानी को मीडिया के माध्यम से सफाई देना पड़ रही है। उक्त विमान की फ़्रांस से सौदेबाजी के चक्कर में रिलायंस ग्रुप ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को पत्र लिखकर सफाई दी है। वही देश का दूसरा पहलू देखे तो, नीरव मोदी, ललीत मोदी सहित कई अन्य अरबपतियों ने देश को धोका देकर, अरबो खरबों की बेशुमार चल-अचल सम्पत्ति बनाकर विदेश यात्री बन गये। और हमारे देश का पूंजीपति घराना लोकतंत्र को हमेशा खम ठोकत दिखाई देता है। मीडिया से लगाकर मंत्री-संत्री पूंजीवाद की गिरफ्त में है। और प्रजातंत्र का दम घुटने को है। मॉबलिंचिंग जैसे मुद्दो पर व्यवस्थापिका (विधायी) कार्यपालिका के ढूलमूल रवैय्ये से न्यायपालिका भी सख्त हुई है। देश-प्रदेश का सरकारी खजाना विकास के बजाय वोट बैंक के विकास में लगा दिया गया है जिससे युवा देश की भावी पीढ़ी सरकारी योजनाओं के आंशिक एवं अल्प लाभ के चक्कर में देश के वास्तविक स्थाई विकास से बेखबर है। ऐसे में देशवासियों पर आने वाले समय में महंगाई की मार ओर अधिक पड़ेगी। मुफ्त की सहायता से साधन सम्पन्न युवा अकर्मण्य हो रहा है। जिसका दूरगामी परिणाम प्रतिकुल रहेगा।

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