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रतलाम जिला अस्पताल के कमरा नंबर सत्रह में डॉ. ललित जायसवाल बिना लाइसेंस के कर रहे हैं गर्भवतियों की सोनोग्राफी

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रतलाम/ राजेश झाला ए. रज़ाक

‘‘कलयुग में इंसान भगवान से भी ज्यादा विश्वास डॉक्टर, चिकित्सक पर करता है, क्योंकि मां के गर्भ के प्रारंभ से लगाकर जब तक बच्चा दुनिया में नहीं आ जाता, तब तक एक मां बनने वाली नारी डॉक्टर से समय-समय पर परामर्श लेती है। दूसरे अर्थों में हम यह भी कह सकते हैं, कि डॉक्टर मानव जीवन में जन्म से लगाकर मृत्यु तक का सहभागी मित्र रहता है। भावुकतावश कई लोग चिकित्सकों की प्रशंसा करते हुए यहां तक कह देते हैं, कि फलाना डॉक्टर तो मेरे लिए भगवान तुल्य है’’…!!
                  कुछ मुट्ठीभर डॉक्टर अपने पद की गरिमा के विरुद्ध आचरण में लग गए हैं, जिनका उद्देश्य सिर्फ आर्थिक रूप से संभ्रांत होने तक ही सीमित है। ऐसे चिकित्सक अपनी असीमित मान, मर्यादा, पद, प्रतिष्ठा का ख्याल रखे बगैर स्वार्थी दुनिया के दलदल में फंसे रहने को तत्पर है, जिससे डॉक्टरी पेशे पर कई बार सवालिया निशान लगते रहते हैं। हम आए दिन सुनते-पढ़ते हैं, कि फला डॉक्टर अपने कर्म से शासन की गाइडलाइन के विरुद्ध कारगुजारी करते हैं। ऐसा ही कारोबार रतलाम जिला चिकित्सालय में चल रहा है। डॉ. ललित जायसवाल शासकीय नियम कानूनों की धज्जियां उड़ाने में अपने आप को महानतम समझ रहे हैं। रतलाम जिला चिकित्सालय में सोनोग्राफी सेंटर पर पदस्थ डॉक्टर ललित जायसवाल के लाइसेंस को लेकर असमंजस है, हालांकि एमडी की डिग्री तथा रेडियोलॉजिस्ट के पद पर कार्यरत डॉक्टर सोनोग्राफी कर सकता है, किंतु बिना लाइसेंस के पीसीपीएनडीटी का कार्य नहीं कर सकते, अर्थात लाइसेंसधारी डॉक्टर ही गर्भवती महिलाओं की सोनोग्राफी कर सकते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है, कि क्या जिला अस्पताल रतलाम के कमरा नंबर 17 में गर्भवती महिलाओं की जिस प्रकार की सोनोग्राफी की जा रही है, वह शासन के मापदंड अनुसार हो रही है, अथवा नहीं?
‘‘प्रीकान्सेप्शन एंड प्रीनेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक’’ (पीसीपीएनडीटी) एक्ट 20 सितंबर 1994, जिसमें गर्भवती महिलाओं की सोनोग्राफी (लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम) पूर्व गर्भाधान एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक। उपरोक्त प्रेग्नेंट युवतियों की सोनोग्राफी यदि लाइसेंसधारी डॉक्टर द्वारा नहीं की जाती है, तो गर्भवती महिला तथा भ्रूण सहित पेट में पल रहे बच्चे-बच्ची पर खतरा संभव है। बच्चा अपाहिज, मंदबुद्धि भी हो सकता है, तथा मां एवं शिशु के जीवन के साथ खिलवाड़ हो सकता है। जिला चिकित्सालय रतलाम में 7 दिसंबर 2019 को जो सोनोग्राफी की गई उसकी रिपोर्ट पर क्या लाइसेंसधारी डॉक्टर के हस्ताक्षर हैं? यदि नहीं तो फिर यह जांच का विषय है। जिस पर संबंधित विभाग के जिम्मेदारों को गंभीरता दिखाना होगी, अन्यथा भविष्य में शासकीय नियम विरुद्ध कार्य करने वालों के हौसले बढ़ेंगे, जिससे मानव जीवन पर खतरा मंडराता रहेगा, जिसका जिम्मेदार कौन होगा? विश्वस्त सूत्र बताते हैं, कि जिला अस्पताल में डॉ. ललित जायसवाल द्वारा जो गर्भवती महिला की सोनोग्राफी की गई है, उसकी रिपोर्ट पर पीसीपीएनडीटी लाइसेंस धारक जिला चिकित्सालय में आरएमओ के पद पर पदस्थ डॉ रवि दिवेकर के फर्जी हस्ताक्षर किए गए हैं। इस प्रकार के कई गंभीर मामलों की परत राष्ट्रीय सप्ताहिक जनवकालत आमजन के बीच खोल रहा है, तथा जिम्मेदारों को समाचार-पत्र के माध्यम से आगाह कर रहा है, कि समय रहते कानून के दायरे में डॉक्टर ललित जायसवाल को नहीं लाया गया तो भविष्य में गर्भवतियों के साथ बड़ी घटना घट सकती है।
गर्भवती सोनोग्राफी के पूर्व भरना होता है फॉर्म F-

किसी भी गर्भवती महिला की सोनोग्राफी करने के पहले उक्त गर्भवती महिला से फॉर्म F की खानापूर्ति करवाना अनिवार्य है, जिसमें महिला शासन के आदेशानुसार अपनी स्वजानकारी की पूर्णरूपेण घोषणा करती है। लेकिन जिला अस्पताल के कमरा नंबर 17 में फार्म F पर गर्भवतियों से केवल साइन, हस्ताक्षर, अंगूठा ही लगवाया गया, तथा फार्म को खाली छोड़ दिया जाता है।
क्या कहते हैं आरएमओ-

 

इस पूरे प्रकरण पर जब जनवकालत के पत्रकार ने जिला चिकित्सालय में पदस्थ आरएमओ से बात की तो उन्होंने बताया कि बिना पीसीपीएनडीटी लाइसेंस के किसी भी गर्भवती महिला की सोनोग्राफी नहीं करना चाहिए। दूसरी बात यह है, कि दिनांक 7 दिसंबर 2019 की जिस गर्भवती महिला की सोनोग्राफी रिपोर्ट पर मेरे हस्ताक्षर की बात कही गई है, वह सर्वथा गलत है। मैंने किसी भी रिपोर्ट पर साइन नहीं किए हैं, यदि मेरे दस्तखत किसी अन्य ने किए हैं तो वह गलत है।

डॉ रवि दिवेकर
आरएमओ, सोनोलॉजिस्ट पीसीपीएनडीटी
जिला चिकित्सालय रतलाम

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