कांग्रेस का कार्यकर्ता सम्मलेन चढ़ा आपसी खींचतान की भेंट

नेताओं के सम्मोहन से बावरिया हुए मौन

रतलाम| (अल्ताफ अंसारी की कलम से )
रतलाम में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव  और प्रदेश प्रभारी श्री दीपक बावरिया की अगुवाई में कांग्रेस कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन हुआ इस कार्यक्रम में आगामी विधानसभा चुनाव और उसके रणनीति और कार्यकर्ताओं और नेताओं की मन की बात से अवगत होना और उन्हें समझना कितना टेढ़ी खीर है इस बात को रतलाम विधानसभा के नेताओं ने सिद्ध कर दी बाबरिया जैसे कांग्रेस के दिग्गज और अनुभवी नेता को भी एक बार तो यह बात सोचने पर मजबूर होना पड़ा होगा कि क्या यह  वही रतलाम है  जिसका देश  की राजनीति में बहुत बड़ा योगदान है चाहे वह प्रदेश हो या फिर देश पर यह कहां समझआने वाली बात है इन नेताओं को वह तो अल्प समय में ही दीर्घ राजनीति की दुहाई  देने  लगते हैं इस सम्मेलन में  उठापटक का सिलसिला  प्रारंभ से लेकर  अंत तक चलता रहा  प्रारंभिक रूप में जब मंच से बावरिया रतलाम जिले की पांचों विधानसभाओं के नेताओं और कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे उसी समय रतलाम विधानसभा की राजनीति और नेताओं की आपसी खींचतान मंच और मंच के आसपास दिखाई दी यहां पर कांग्रेस में आगंतुक और किसी  स्थान  से कांग्रेस के भावी उम्मीदवार का चोला ओढ़े हुए और रतलाम की राजनीति में कुछ दिन पहले एक भूचाल लाने वाले पारस सकलेचा उद्बोधन के समय जो बाबरिया का चल रहा था नदारद रहे तब से ही इस बात का अंदाजा लगाया जा  रहा था  कि कहीं ना कहीं रतलाम की राजनीति में उठापटक है असंतोष है संगठन में दरार है और यह बात उस समय प्रमाणित और सिद्ध साबित हुई प्रभारी ने नेताओं को मन की बात कहने का  मौका दिया  बस फिर क्या था  मौका भी है दस्तूर भी  नेताओं  भी भला कहां पीछे रहने वाले थे  पूरा मन ही बाहर निकाल कर रख दिया  और  जब मन को टटोला तो  इसमें से निकला रतलाम की राजनीति का वह चेहरा  जो असंतोष से  गुटबाजी से  और  खींचतान से  लबरेज था जिसका समय समय पर प्रमाण प्रस्तुत किया गया लेकिन प्रभारी ने अपनी  सूझबूझ  और  सहनशीलता  और सहजता का परिचय देते हुए  सामंजस्य  बैठाया  किंतु  जो रतलाम  और उसके नेता  ग्रामीण अंचल के  युवाओं और  राजनीति में पदार्पण करने वाले  कार्यकर्ताओं  को सीख देने वाले प्रतीत होना चाहिए  उनकी  इस व्यवहार को देखकर  तो  नवागंतुक  और  नवाचार  कार्यकर्ताओं ने  क्या सीखा होगा ? इसका अंदाजा भी  सहज ही लगाया जा सकता है |रतलाम  और आसपास से आए हुए कार्यकर्ताओं और नेताओं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा बात जब मन की  बात निकलेगी या मन में आए हुए गुबार को बाहर करने का समय आएगा या यूं कहिए की भड़ास निकाली जाएगी  तब कौन सा भूचाल आएगा यह प्रभारी भी नहीं समझ पाए   एक कांग्रेसी नेता ने यहां तक कह डाला कि  घोड़े पर चढ़ता कोई और है  और  तोरण दूसरा आदमी मर जाता है  ऐसी स्थिति में  क्या होगा ?
यह बात सुनने में छोटी लगती हो लेकिन अगर इसका  विश्लेषण किया जाए और चिंतनीय अंदाज में सोचा जाए तो बात बड़ी गंभीर है जो कांग्रेस की यथार्थ स्थिति को परिभाषित भी करती है और सिद्धि करती है की नीति और परिणीति में क्या अंतर है नीति के तहत किसी को पद का दावेदार बना दिया जाता है लेकिन संगठन में गुटबाजी और असंतोष के चलते परिणीति एक टांग और 99 खींचने  वाले जैसी ही हो जाती है यह बात  बाबरिया ने सुनी  तो रतलाम के बारे में उनकी धारणा क्या हुई होगी इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कांग्रेस सम्मेलन में कार्यकर्ता  गहरे असंतोष में दिखाई दिए गुटबाजी चरम सीमा पर और खींचतान| अब सवाल है कि रतलाम में आयोजित कांग्रेस कार्यकर्ता सम्मेलन इस गहरी मतभेद और खींचतान की खाई को कितना  पाठ सकती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा |
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