राजेश झाला ए. रज़ाक

एनटी रामाराव का आंध्रप्रदेश चंद्रबाबू नायडू के हाथों सज सवरने को लालायित है। राजधानी अमरावती को दुल्हन बनाने के लिए बाबू ने देशहित की राजनीति से किनारा कर क्षेत्रवाद को फलाने फूलाने में अपनी राजनीति ऊर्जा लगा दी है। राजनीतिज्ञ दोनों (आंध्र+बिहार) के बाबुओं को चाहे कितना भी लोकतंत्र के नाम पर भला बुरा कहे, लेकिन सब जानते हैं, कि दोनों के नाम पूरा देश जरुर जानता है। लेकिन पूरे देश में काम करने की कुब्बत (ताकत) राहुल गांधी जैसी नहीं है, इसलिए दोनों अपने-अपने प्रदेश से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में राजनीति मजबूत करने के किरदार में नहीं है।
यही कारण है कि, चंद्रबाबू ने अपने हिस्से का फायदा लेकर सरकार के रबर स्टैंप बने रहने को तैयार हो गए हैं, हालांकि इस प्रकार की हरकत भारतीय लोकतंत्र को कमजोर करने वाला कदम है। वर्तमान में राजनीतिक दल और प्रभावी जनप्रतिनिधि सत्ता की चाशनी पर अपनी लार टपका रहे हैं। जिससे राजनीति में नैतिक मूल्यों का ह्रास होता नजर आ रहा है।

