नई दिल्ली। आज बात-बात पर राई का पहाड़ बनाया जाता है। अर्थात नपी-तुली जुबान में कोई भी बोलने को तैयार नहीं है छोटी सी घटना को कुछ सिरफिरे आधुनिक संसाधनों के जरिए दूर-दूर तक बात का बतंगड़ बनाने में पीछे नहीं रहते हैं। देश में व्याप्त कुछ समाजकंटक ओ का ताना-बाना इस प्रकार का बना
Browsing: देश
देश के कानून को सूक्ष्मता से जानने वाले राज्य सभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी देश के कई अहम मुद्दों पर तर्कसंगत बयान देते रहे हैं स्वामी जी यह बात अच्छे से जानते हैं कि कौन सी बात मीडिया में कब कहना है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी पड़ोसी देश पाकिस्तान की यात्रा बिना किसी शोर
नगेन्द्र सिंह झाला कार्यकर्ता और नेता में, साहब और नौकर जैसा बर्ताव होता है। नेताजी (स्वामी) है कार्यकर्ता (सेवक) है। कभी-कभी स्वामी भक्ति में सेवकों को कई ऐसे कार्य भी करने पड़ते है। जो सार्वजनिक रूप से मान्य नहीं है। भारतीय समाज में कई-कई प्रकार के सज्जन भांती-भांती की गतिविधियों में लिप्त रहते है। यहां
प्रकाश तंवर अपराधियों की कोई जात-पात नहीं होती है, और ना ही कोई ईमान धर्म होता है। लेकिन भीड़तंत्र के पीछे का दिमाग, हमेशा अलगाववादियों का होता है। जो हमारी राष्ट्रीय एकता-सामाजिक गठजोड़ को कमजोर करने में लगा है। देश में सामाजिक विकृतियों को बढ़ावा देने वाले, भारतीय समाज के ही असामाजिक तत्व है। जिन्हे
मैं कांग्रेस, मैं भाजपा के फेर में ना उलझे जनता…. राजेश झाला ए ऱजाक लोकतंत्र में ‘मैं’ (स्वयं भू) का कही स्थान नहीं है। फिर भी आज जनतंत्र में ‘तू-तू-मैं-मैं’ का महत्व-कद क्रमशः बढ़ता जा रहा है। लोकतंत्र में लोकसभा चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से तथा राज्यसभा चुनाव परोक्ष-अप्रत्यक्ष प्रणाली से प्रजातंत्र में सम्पन्न होते आये
रतलाम | नगेन्द्र सिंह झाला केन्द्र की मोदी सरकार आर.टी.आई (सूचना का अधिकार) एक्ट 2005 के कानून में परिवर्तन करने का प्रयास कर रही है। क्योंकि केन्द्र सरकार मुख्य सुचना आयुक्त (सी.आई.सी) को मुख्य चुनाव आयुक्त से कमतर मानती है। स्मरण रहे देश में भाजपाईयों एवं इनसे सम्बंधितों ने ही ‘सूचना का अधिकार’ अधिनियम 2005
प्रकाश तंवर लोकतंत्र में विश्वास और अविश्वास प्रस्ताव की सार्थकता तभी होती है। जब पक्ष एवं विपक्ष के संख्या बल में कमोबेश घटने-बढ़ने की गुंजाईश नजर आती है। मोदी सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव विपक्षीयों द्वारा लाया गया। विंâतु भारतवासी यह तो अच्छी तरह जानता हैं, कि यू.पी.ए के ‘अविश्वास प्रस्ताव’ से आमजन को कोई
कल्पेश याग्निक का असामायिक निधन ‘असम्भव के विरूद्ध’ है। हवा का स्वभाव है बहना। फिर चाहे बहती हवा में खुशबू हो या गंध, वातावरण में वह अपनी उपस्थिति दर्ज कराती ही है। जब एहसास होता है अपने-पराये सम्बंधों का, तब भी वातावरण (क्लाइमेट) विषय के अनुरूप ही बनता है। जैसे ही ‘कल्पेश जी नहीं रहे’
प्रकाश तंवर की कलम से देश के प्रथम पी.एम है श्री मोदी जो कबीरदास की मजार पर मथ्था टेकने पहुंचे। मोदी जी ने कबीर वाणी की पंक्ति ‘काल करे सो आज कर….’ केो प्रभावी ढंग से मोदी सरकार की दिनचार्य में उतारने का खुलासा किया। इस पर लोकतंत्र के प्रहरियों ने भी कबीरदास के अंदाज
नगेन्द्र सिंह झाला की कलम से वर्तमान में देश में एक जुमला चल रहा हैं कि ‘हम फिट तो देश फिट’ हम फिट से आशय हैं कि ‘नेता जी फिट’ नेताजी से आशय हमारे देश के लाड़ले विख्यात नेताजी सुभाषचन्द्र बोस से कदापि नही है। बल्कि वर्तमान के विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के नेताद्वैय से