राजेश झाला ए.रज़्ज़ाक|
देश में दुष्कर्म छेड़छाड़ जैसी घटनाओं के शिकार पीड़िताओं को तुरंत विधि सम्मत न्याय की गुहार लगाना चाहिए, किंतु पिछले कुछ वर्षों से नारी उत्पीड़न की जो शिकायत की जा रही है, वह वर्षों पुरानी होती है| जिससे भारतीय समाज में भ्रम पैदा होने लगा है| कई प्रकरण में पीड़ित पहली बार थाने जाती है तो, फिर उसका अनुसरण करते हुए अन्य भी एफ. आई. आर. दर्ज करवाने पहुंच जाती है| ऐसे में समाज उन पीड़िताओं से यही सवाल पूछता है कि, यदि पहली बार शिकार हुई पीड़िता तुरंत पुलिस स्टेशन चली जाती तो, उपरोक्त तथाकथित की दूसरों के साथ छेड़खानी करने की हिम्मत ही नहीं होती| समाज में इस गंभीर विषय पर देशवासी चर्चारत है| कुछ पीड़िताओं का कहना रहता है कि, हम बदनामी के डर से चुप थे| तो कानून तो जो जुल्म सहता है और जिम्मेदार एजेंसी को नहीं बताता है तो उस पर भी विधि सम्मत कार्रवाई होना चाहिए, क्योंकि उस शख्स को अपराध करने का बढ़ावा मिला, तथा नए शिकार के रूप में जो पीड़िताएं जाल में फसी शायद वह बच जाती | कई बार कुछ आपराधिक प्रवृत्ति वाली भी सज्जन पुरुषों को ब्लैकमेल करने लगती हैं| ऐसी घटनाएं भी देश में उजागर हुई है| कुछ हाई प्रोफाइल फैमिली के पाश्चात्य करण का परिणाम भारतीय समाज को भोगना पड़ रहा है| भावनाओं में पवित्रता की कमी होने से “मी टू कैंपेन” सुर्खियों में आते हैं| आज स्वामी विवेकानंद के पद चिन्हों पर चलकर वीर्यवान बन चरित्र निर्माण की हम पुरुष वर्ग को जरूरत है, वही युवतियों को भी मां सीता के शील स्वभाव को अंगीकार करने की आवश्यकता है| तभी ऋषि मुनियों की इस भारत भूमि से सत्य-सनातनी ऊर्जा का सही दिशा में संचार होगा|

