राजेश झाला ए. रज़्ज़ाक
सरहद पर मातृभूमि के लाल राष्ट्र की रक्षा के लिए तैनात हैं, देश के अंदर तमाम सुरक्षा एजेंसियां देश वासियों की रक्षा कर रही है। प्रकृति भी भारतवर्ष की रक्षा कर रही हैं। पर्वत, पेड़, जल, जड़ चेतन हम प्राणी मात्र के जीवन के रक्षक है। सनातन धर्म में रक्षा सूत्र के महत्व को भी भाती-भाती के किवदंतियों के माध्यम से बताया गया। भारतीय समाज में भाई-बहन के पवित्र बंधन को प्रतिवर्ष रक्षा-सूत्र बांधकर ताजा किया जाता है। भारत माता के पुत्र-पुत्री प्रत्येक समाज में प्रेम स्नेह के प्रतीक कच्चे धागे को बांधकर अपनी उम्मीदों को पक्का करते आए हैं। बहन जिस भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र राखी बांधती है, वह भाई किसी का पति तो किसी का पिता तो किसी का चाचा, मामा, मौसा, फूफा तो किसी का दामाद और किसी का बेटा तो किसी का पोता किसी का नाती होता है। एक भाई किसी का साला होता है, तो किसी का ससुर भी होता है। रक्षा सूत्र बांधने वाली बहन किसी की बेटी तो किसी की पत्नी होती है। इस प्रकार भाई और बहन के रिश्ते अनन्य हैं, और इन रिश्तो को निभाने का बंधन भाई बहन की रक्षासूत्र से प्रमाणित होता है। खून के रिश्तो से बढ़कर कच्चे धागे के पक्के रिश्ते भी हमारे देश में इतिहास के पन्नों पर सुनहरे रूप में अंकित हैं। इंसानियत के रिश्तो के बंधन से भारतीय समाज लबरेज है, यह हमारी अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता है। देशभर में राखी रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा से लगाकर जन्माष्टमी तक मनाते हैं, कुछ समाज अन्य माह में रक्षाबंधन पर्व मनाते हैं, राष्ट्रवादियों को राष्ट्रीय साप्ताहिक जनवकालत की यही शुभकामना है कि हमारा हरदिल हरपल रक्षा बंधन में बंधा रहे।
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