राजेश झाला ए. रज़्ज़ाक
प्रजातंत्र में वैसे तो कई दिग्गज अपने भाषणों में देश का सिपाही, प्रहरी, चौकीदार रूपी शब्दों से अपने आप को अलंकृत करते हैं, लेकिन उपरोक्त पदवी के वास्तविक हकदार कौन हैं? देश की जनता जानती है। अटल की वाणी को जिस में टाला वो राजनीति की गड्डी में पिसा गए। सन 2002 में गुजरात दंगों में तत्कालीन भाजपा सरकार को जब अटल जी ने राजधर्म की सीख दी, और पार्टी की छवि को लोकतांत्रिकता की कसौटी पर खरा उतरने के लिए कदम बढ़ाए तो कुछ परिपक्व नेताओं ने अटल के इरादे को टाल दिया। ऐसी कई कई परिस्थितियां अटल जी के सामने आए किंतु अटल के, अटल इरादों में ही दो दर्जन मतभेद वाली पार्टियों को जोड़कर भारतीयों के दिलों पर राज किया। आज अटल जी के साथ के कुछ नेताओं को जरूर इस गलती का एहसास हुआ होगा, कि काश श्रद्धेय अटल जी की बात मानी होती तो देश का इतिहास और प्रभावशाली बनता। सन 1980 में जन्मी भारतीय जनता पार्टी 38 साल की जवां पार्टी और देश भी जवां है। ऐसे में अनुभवियों की देश को आवश्यकता है। जवां होना और उम्र दराज होना दोनों ही बातें सौभाग्य की होती है यदि जवां और बुजुर्ग में जुगलबंदी हो जाए तो राष्ट्र के चहुमुखी विकास में अहम को लेकर कभी अड़चन, बाधा नहीं आएगी। आज हमें पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेई के पदचिन्हों पर चलने की आवश्यकता है, और यही कर्णधारों के लिए सच्ची श्रद्धांजलि है। क्या हमारे कर्णधार स्वर्गीय अटल जी के महत्व को आत्मसात करने की लिए अटल हैं?

