नैतृत्वकर्ता जमात देश को परतंत्र बना देगी
सप्तसिंधु, आर्यवृत्त, भारतवर्ष, हिन्दुस्तान, इण्डिया की 71 वीं स्वतंत्रता आजादी की वर्षगांठ हम मना रहे है। राष्ट्र स्वतंत्र रूप से 71 साल का हो गया। आजादी के पहले व आजादी के समय जन्मे देशवासी प्रोढ़, बुजुर्ग अवस्था में आ गये। कुछ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, जईफ मूल्क की जवां पीढ़ी को देख रहे है। राष्ट्र की सरकार के संचालन को देख रहे है। तो अब मुट्ठीभर बचे देश भक्तों का हृदय द्रवित हो उठा है। कि काश हमारी भी उन वतन परस्त दिवानों के साथ सदगति-वीरगति को प्राप्त हो जाते, तो ज्यादा अच्छा होता। आज जनप्रतिनिधि जनता के प्रति कम और सरकार के प्रति ज्यादा विनम्र रहते है। देश का इतिहास गवाह हैं सन् 1947 के पहले फिरंगीयों की सरकार के आगे, कभी मूल्क के कर्णधार नहीं झूके। लेकिन आज हमारे ही देश में फिरंगीवाद का चलन चरम पर होता देख स्वतंत्रता सेनानियों की आंखे नम है। गुलाम हिन्दुस्तान के हिन्दुस्तानियों ने ताउम्र मेहनत मशक्कत की कमाई से अपना और अपने परिवारजनों का पेट पाला। लेकिन फिरंगी सरकार के आगे नहीं चूके। आज मूल्कवासियों की जवानी खराब करने के पीछे मात्र वोट बैंक की सियासत देश में हावी हो गई है। पहले अंग्रेजो ने देशवासियों का शोषण किया। आज आजाद भारत में नागरिकों की भावनाओ के साथ खिलवाड़ कर, उसे लोकलुभावनी योजनाओं में उलझा कर, जवान पीढ़ी को निखट्टू, बैकार बना दिया। देश में प्रजातंत्र के नाम पर देश की जनता को कई वर्गो-तपको में बांट दिया। देश की राजनैतिक पार्टीयां सरकारी खजाने से मुफ्त में बिना काम किये कई लाभ दे रही है। जिसके बदले में सिर्फ राजनैतिक पार्टीयों को देश-प्रदेश की सत्ता चाहिये। देश के कर्मचारी शासकीय सेवकों और सम्भ्रन्त परिवार की गाढ़ी कमाई के ‘कर’ (टेक्स) के बूते पर, तथा विदेशी ऋण पर राष्ट्र के जिम्मेदार देश की जनता को अस्थाई सुख-सुविधा देकर राष्ट्र्र को गरीबी की ओर धकेल रहे है। राष्ट्र के पुरखों ने अपने प्राणों की आहूती देकर, देश की भावी पीढ़ी के लिए सुनहरे सपने देखे थे। जो आज देश के नेताओं ने देशवासियों को मालीकाना हक बरकरार रखने के बजाये, कामगार बनाकर रख छोड़ा है। अतित में एक ईष्ट इण्डिया कम्पन्नी ने देश को गुलाम बना लिया था। आज हमारे देश के नेता विदेशी कम्पन्नियों को देश में लगवाने का श्रेय लूटने में लगे है। और हमारे युवा भारत के जवान हाथ फिर इन कम्पनियों की गुलामी में लगा रहे है। क्या हम सच्चे अर्थों में अच्छे दिन की ओर बढ़ रहे हैं…?

