विश्वास, अविश्वास की राजनीति पर जनता मौन

प्रकाश तंवर
लोकतंत्र में विश्वास और अविश्वास प्रस्ताव की सार्थकता तभी होती है। जब पक्ष एवं विपक्ष के संख्या बल में कमोबेश घटने-बढ़ने की गुंजाईश नजर आती है। मोदी सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव विपक्षीयों द्वारा लाया गया। विंâतु भारतवासी यह तो अच्छी तरह जानता हैं, कि यू.पी.ए के ‘अविश्वास प्रस्ताव’ से आमजन को कोई फायदा या नुकसान होने वाला नहीं है। यह तो केवल राजनीतिक दलों के संख्याबल की कसौटी मात्र है। हालांकि निरंकुश सत्ता पर विपक्षीयों द्वारा अंकुश लगाना प्रजातंत्र की परीपाटी है। संसद ठप करने तथा संसदीय कार्यवाही रोकने से, देश में सकारात्मक संदेश नहीं जाता। अपितू देश के जनप्रतिनिधियों को पूर्ण इच्छा शक्ति के साथ, अनुचित प्रस्तावों पर डटकर तथ्यात्मक चर्चा करने की आवश्यकता है। संसद की कार्यवाही रोकने से जो करोड़ो रूपए खर्च होते है उसका जिम्मेदार कौन..? आज आमजन सिर्पâ महंगाई की मार से घायल अधिक हो रहा है। जबकि चरमपंथी भीड़ पर काबू पाने के लिए सार्थक प्रयास का अभाव है। हमारे देश के तमाम जिम्मेदार, जुमलेबाजी में आमजन को गुमराह कर, अपना स्वार्थ सिद्ध करने मे लगे है। देशवासियों के बेरोजगार हाथों की तुलना पूरी दुनिया से की जा रही हैं कि दुनिया में सबसे कम बेरोजगार भारत में है। इस प्रकार के वक्तव्य देशहित में नहीं है। स्मरण रहे राज्यसभा में केन्द्रीय मंत्री संतोष गंगवाल ने कहा कि दुनिया में सबसे कम बेरोजगारी भारत में है।

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