“कर चले हम फिदा जानो तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों”
ए. रज़्ज़ाक
धरती माता के सच्चे सपूतों ने अपने सपनों को मां भारती के हवाले कर दिया, और देश के कुछ सियासत दार सपनों के सौदागर पिछले कई वर्षों से सरहद के नाम से घिनौनी राजनीति कर रहे हैं। जब-जब मातृभूमि का सपूत अपना लहू बहता है, तब-तब राजनीती के गलियारे से कुछ मुट्ठी भर लोग देश की जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते नजर आते हैं। निम्न बौद्धिक के नेताओं के उल जुनून बोल वचनों से भारतीय मानस आहत है। वही जब (राजस्थान, सिहोरी के विशेष न्यायालय के जज श्री राजेश नारायण शर्मा) जैसे देश के जिम्मेदार गैर जिम्मेदाराना टिप्पणी शहीदों पर करें, तो राष्ट्रीयता की भावनाओं पर कुठाराघात होता है। आखिर मोदी जी की क्या मजबूरियां रही, कि कश्मीर में पीडीपी के साथ भाजपा ने सत्ता सुख भोगा? भाजपा + पीडीपी की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती ने राज्य में संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त कई तत्वों को सिरे से नकारा है। गुजरात दंगों के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई ने भी तत्कालीन सीएम गुजरात, वर्तमान के पीएम को राज धर्म की नसीहत दी थी। जम्मू कश्मीर में जब भाजपा पीडीपी ने गठबंधन कर सरकार बनाई तो, फिर क्या कारण रहा कि केंद्र की भाजपा राज्य सरकार को राजधर्म नहीं सीखना पाई? आज देश का नागरिक जिम्मेदार नेतागणों से सवाल कर रहा है, कि क्या हमारे जांबाज सैनिक ऐसे ही शहादत देते रहेंगे? और नेतागण वीर रस से ओतप्रोत भाषण देकर मार्मिक घटनाओं पर इतिश्री करते रहेंगे। आज देशभर के परिवार जन जिम्मेदारों से स्थाई हल चाहते हैं, ना कि आश्वासन! कुछ बिकाऊ टिकाऊ मीडिया देश के सौम्य वातावरण को दूषित करने से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे में जन सामान्य को धैर्य से निर्णय लेने की आवश्यकता है। पूरा देश शहीदों की याद में शोक संतप्त है। हमारे देश के सभी धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्र के जिम्मेदारों को इस दुख की घड़ी में सहिष्णुता का मंत्र देशवासियों को देने की आवश्यकता है, तथा देशहित में सेना को स्वविवेक से कार्य को संपादित करने के लिए सियासत बाजों को राजनीतिक लाभ लेने से बाज आना चाहिए, तभी सेना निर्णायक कदम उठा पाएगी।