राजेश झाला ए.रज़्ज़ाक|
भारतीय समाज को सभ्य बनाने का दायित्व शिक्षक परिवार का है। एक शिक्षक को साबुन की तरह होता है, जो स्वयं पानी में गल जाता है, लेकिन कपड़ों को उज्जवल कर देता है। उसी प्रकार शिशु मंदिर में पढ़ाने वाला शिक्षक हो या फिर महाविद्यालय में पढ़ाने वाला शिक्षक सभी अपने छात्र विद्यार्थियों को अपने देश समाज को संस्कारित एवं संगठित करने एवं राष्ट्र्रीयता के भावों को भरकर सर्वांगीण विकास करने में अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है। लेकिन वर्तमान में शिक्षा के व्यवसायीकरण के दौर में कुछ मुट्ठीभर विकृत मानसिकता के पुजारी सर्वशिक्षक समाज को लांछित कर रहे हैं। पहले शिक्षक गुरु धैर्य, शांति, परोपकार की प्रतिमूर्ति हुआ करते थे। वही आज अनाज में कंकड़ की तरह कुछ शिक्षक पद को बदनाम करने से भी गुरेज नहीं करते हैं। हाल ही में रतलाम जिले के तालोद गांव के प्राइमरी स्वूâल के एक मास्टर ने गांधी परिवार पर जो अशोभनीय टिप्पणी की है। जिससे यह स्पष्ट होता है, कि ऐसे व्यक्ति क्या अबोध विद्यार्थियों को सही दिशा दे पाएंगे? वहीं प्रदेश के मुखिया श्री कमलनाथ ने सहिष्णुता के मंत्र को सार्थक करते हुए अपने विशाल ह्रदय का प्रदेश एवं देशवासियों को प्रमाण देते हुए उक्त शिक्षक का निलम्बन बहाल कर दिया। जन चर्चा यह भी है कि यदि कोई कर्मचारी भाजपाई हुक्मरानों पर अभद्र टिप्पणी कर देता तो कई लोग झंडे लेकर सड़कों पर उतर जाते तथा तत्काल कार्रवाई के लिए धरना ज्ञापन आदि की राजनीति फलने फूलने लगती।