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कंट्रोलियो और शराबबाजो की राजनीति में फक-फक

breaking मध्यप्रदेश

राजेश झाला ए.रज़्ज़ाक

देश में भले ही दारूबाज विजय माल्या नहीं है तो क्या? उनके कई अनुयाई शिष्य गुरु के हर पार्टी में साफ-सुथरे कपड़ों पर अल्कोहल रहित खुशबू एवं बड़े गर्मजोशी के साथ नेतापंक्ति में दर्शन देते आ रहे हैं| प्रदेश में शराबबंदी के नाम से भी आंदोलन होते आए हैं| देश और हमारे प्रदेश की जनता इतनी भोली है, कि जब दारु के ठेके होते हैं, उस समय भाजपा के छुट्ट भईये दारूबंदी के नाम पर तो कहीं शराब दुकान हटाने के नाम पर नेतागिरी करते हैं, तथा शासन के अधिकारियों कर्मचारियों से लोहा लेते हैं| धरना प्रदर्शन करते हैं, ज्ञापन देते हैं और अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं| क्योंकि आम जनता आज भी यह नहीं जान पाई की दारू की दुकानें ठेके बंद करने का काम शासकीय अमले का नहीं है| यह काम है शिवराज की भाजपा सरकार का ! क्योंकि जब तक प्रदेश में सरकार शराब बंदी पर कानून नहीं बनाएगी, तब तक सरकारी मुलाजिम संवैधानिक नियमों का पालन कैसे करवा पाएंगे पेट्रोल के दाम महंगे हैं जबकि शिव मामा के प्रदेश में शराब सस्ती है जिससे युवा वर्ग नशे का आदी हो रहा है| देश का पंजाब राज्य भी नशे की चपेट में रहा है| इस प्रकार मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार की गलत नीतियों के कारण कई घर दारू से बर्बाद हो रहे हैं| धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले दारु सस्ती और डीजल पेट्रोल महंगा कर आमजन के साथ छलावा कर रहे हैं| सुरक्षाकर्मी पुलिस में पदों का ऐसा दबाव रहता है, कि यदि कोई ईमानदार पुलिस अफसर अवैध शराब को पकड़ने जाते हैं, या उनका ठिकाना स्थान सील करते हैं तो अफसर का तबादला करवाने के लिए पूरा सिंडीकेट लग जाता है| जैसे विगत दिनों रतलाम में जब राशन  दुकानों (कंट्रोल) पर जब तत्कालीन कलेक्टर बी. चंद्रशेखर ने छापे मारे और एफ आई आर दर्ज हुई, तो “क्या भाजपा और क्या कांग्रेस” पूरा सिंडीकेट ईमानदार अफसर को हटाकर ही माना| आज वर्तमान में कोई ऐसा जनप्रतिनिधि नहीं कि कण्ट्रोलियो द्वारा किए गए करोड़ों के महाभ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए आंदोलन या ज्ञापन दे, और भ्रष्ट तत्वों को जेल की हवा खिलवाए | स्मरण रहे कण्ट्रोलिये राजनीति में सक्रिय हैं |

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