Visitors Views 690

नेताओं के फरेब से बचे भारतवासी

breaking देश

राजेश झाला ए. रज़्ज़ाक

आज प्रत्येक भारतीय परिवार का युवा बड़े असमंजस में है| युवा युवतियों का एक  तपका उच्चशिक्षित है, तो वही दूसरा तपका अभाव के चलते प्राथमिक शिक्षा दीक्षा तक सिमट गया है| देश एवं राज्यों की शिक्षा नीति से लगाकर अन्य लोक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ योग्य पात्र से दूर है व्यवसायीकरण के इस दौर में विद्यार्थी अब ग्राहक के रूप में परिणित हो गए हैं| ऐसी स्थिति में सामान्य परिवार अपने बच्चों को चाहकर भी उच्च शिक्षा दिलवाने में असमर्थ नजर आ रहे हैं| लोकतंत्र में सरकारों की तुष्टिकरण की नीति से जहां मुट्ठी भर भारतीयों के हितों की पूर्ति होती है| वहीं अन्य मुल्क वासी अवसर की प्रधानता वाले वाक्य से कोसों दूर है अर्थात देश में असमानता के कई दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं| बेकार हाथ कमजोर दिमाग करने वाले वह कौन हैं? जो युवा भारत को बेरोजगारी की खाई में धकेल रहे हैं| महंगाई के वातावरण में खाली जेब युवा-मन को कचोट रही है, तो संस्कारों की बलि चढ़ने लगती है | व्यक्ति अमर्यादित होने लगता है, इंसान अच्छा बुरा जानते हुए भी अविवेकी हो जाता है, और भारतीय समाज का अपराधी बनने लगता है, इन कुतर्को के साथ कि ईमानदारी की बेइज्जती से भली है जेल की रोटी! अर्थात आज रोटी के लाले पड़ गए हैं | नारों की राजनीति युवा दिमाग को गुमराह करने में लगी है|  देश में कुछ कूटनीतिक भारतीय भावना के साथ खिलवाड़ करने से बाज नहीं आ रहे हैं | भारतीय बाजार में कुछ लम्पटों ने धर्म पंथ जाति की फ्रेंचाइजी ले रखी है| जिसकी मार्केटिंग कुछ राजनीतिक मंचों से की जाती है| दुनिया में भारत वर्ष को सत्य-धर्म, सत्य-ज्ञान एवं सत्य-कर्म के आधार पर देखा जाता है, तथा परखा भी जाता रहा है| आज भारतीय तपोभूमि पर वह कौन है? जो सांप्रदायिक जहर के बीज बो रहे हैं, और प्रजातंत्र के चुनावी उत्सव में भारतीय मतदाताओं को कड़वे एवं खट्टे फल सेवन करने के लिए दे रहे हैं | अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता के मंत्र को बदलने वाले कौन हैं? जो राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के वशीभूत होकर राष्ट्र की एकता अखंडता को कमजोर करने में लगे हैं| आज हमें अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक, अजाक्स, सपाक्स वर्ग से देश में जानने लगे हैं| इस प्रकार की हवा आगामी समय में आंधी ना बन जाए| इसके लिए हम सभी भारतीयों को नेताओं की कूटनीतिक चाल को समझने की आवश्यकता है, तथा संविधान सम्मत आपसी समन्वय से सर्वसामान्य निर्णय लेने की घड़ी है, तभी हम विश्व पटल पर प्रजातंत्र को मजबूती दे पाएंगे|

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Visitors Views 690